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नमस्कार दोस्तों यदि आप कबीर दास के दोहे कि पीडीएफ (Kabir Ke Dohe In Hindi PDF) डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप एकदम सही जगह पर आए हैं आज इस लेख में कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी पीडीएफ दी गई है जिसे आप आसानी से नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से डाउनलोड कर सकते हैं
Kabir Ke Dohe In Hindi PDF
इस लेख में आप कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में दिए गए हैं यदि आप कबीर दास के दोहे पढ़ते हैं तो आप अवश्य ही जानते होंगे कि संत कबीरदास भारत के प्रसिद्ध महान कवियों में से एक हैं जिन्हें भारतीय समाज में अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था संत कबीर दास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) मैं लहरतारा के पास सन्1398 में एक गरीब जुलाहे परिवार में हुआ था

कबीर दास जी हिंदी जगत के प्रसिद्ध कवि थे जिन्हें उनकी दोहों के कारण आज भी उतना ही आ जाता है जितना कि सब याद किया जाता था, कबीर दास जी के दोहे में अत्यंत सच्चाई और गहराई की बातें छुपी होती है
यदि आप कबीर दास जी के दोहे पढ़ना चाहते हैं तो आप इस लेख में आसानी से कर सकते हैं साथ ही आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आप कबीर दास जी के दोहे को डाउनलोड भी कर सकते हैं
Kabir Ke Dohe In Hindi PDF Overview
Name Of PDF | Kabir Ke Dohe In Hindi PDF | कबीर के दोहे अर्थ सहित Pdf |
Language | Hindi |
Category | धार्मिक,(दोहे) |
Size Of PDF | 1.3 MB |
Number Of Pages | 30 |
Source | Pdffly.net |
कबीर दास के दोहे एवं अर्थ | Kabir Ke Dohe In Hindi PDF
यहां पर आपको कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ हिंदी में दिए गए हैं ताकि आपको समझने में कोई परेशानी ना हो, तो आइए देखते हैं कबीर दास जी के दोहे एवं उनके अर्थ
।। कबीर के दोहे ।।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।1।
अर्थ :- कबीर दास जी के इस दोहे के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ दुख में ही ईश्वर को याद करता है और सुख में ईश्वर को भूल जाता है, यदि व्यक्ति सुख में भी ईश्वर को याद करें तो फिर दुख भी कभी नहीं आएगा
पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार ।2।
अर्थ :- कबीर दास जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि लोग देवी देवताओं की पत्थर की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करते हैं और ऐसा करने से भगवान मिलेंगे तो मैं पहाड़ की ही पूजा कर लू , मूर्ति बनाकर भगवान की पूजा करते हैं यह शास्त्र विरुद्ध साधना है जिससे हमें कोई लाभ नहीं होने वाला इससे अच्छा मैं उस चक्की की पूजा कर लूं जो हमें खाने के लिए आटा प्रदान करती हूं
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।3।
अर्थ :- कबीर दास अपने इस दोहे में कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, किंतु यदि आपका मन साफ नहीं है, तो यह सब करने से कोई लाभ नहीं जैसे मछली सिर्फ पानी में ही रहती है लेकिन फिर भी वह स्वयं को साफ नहीं रख पाती मछली से तेज बदबू आती है पानी में रहने के बाद भी
काल करै सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ।4।
अर्थ :- कबीर जी के इस दोहे के अनुसार हमारे पास समय बहुत कम है इसलिए जो काम हमें कल करना है उसको आज ही समाप्त करना चाहिए और जो आज करना है उसको अभी इसी वक्त कर लेना चाहिए, क्योंकि पल भर में कब क्या हो जाए यह कोई नहीं जानता इसीलिए अपने सभी काम उसे खत्म कर लेनी चाहिए
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ।5।
अर्थ :- इस दोहे के अनुसार कबीर जी कहते हैं कि यदि आपके सामने भगवान और गुरु दोनों एक साथ खड़े हो तो आप पहले किसका चरण स्पर्श करेंगे? कबीर जी कहते हैं कि गुरु ने ही अपने ज्ञान से हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा सर्वोपरि है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।6।
अर्थ :- कबीर दास जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि इस तरह बड़े होने का क्या फायदा जैसे कि खजूर का पेड़ जो ना ही किसी को छाया देता है और ना ही फल जो केवल बहुत ऊंचाई पर होता है, इसी तरह आपका भी बड़ा आदमी बनने का क्या फायदा जो किसी का भला कर सके
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।7।
अर्थ :- कबीर दास जी के इस दोहे के अनुसार मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे सुनने वाले को अच्छा लगे, मीठी वाणी बोलने से दूसरों को तो सुख पहुंचता ही है साथ ही खुद को भी आनंद की अनुभूति होती है
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।8।
अर्थ :- कबीर दास जी के इस दोहे के अनुसार किसी व्यक्ति से उसकी जाति पाती नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उससे उसका ज्ञान और ज्ञान की बातें पूछनी चाहिए क्योंकि असली महत्व ज्ञान का होता है जैसे मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं ठीक उसी प्रकार
क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई, देखत नैन चला जग जाई।
एक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण कै दीवा न बाती।9।
अर्थ :- संत कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य अपने पुत्र से वंश की बेल को सदैव बनाए रखना चाहता है किंतु यह उसकी भूल है जिस प्रकार लंका के के राजा रावण के लगभग एक लाख से अधिक पुत्र हैं और सवा लाख नाती थे किंतु फिर भी वर्तमान में उसके कुल अथवा वंश में कोई भी नहीं बचा सब मस्त हो गए इसलिए मानव को भगवान से यह नहीं मांगना चाहिए जो अस्थाई है
मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार ।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डारि ।10।
अर्थ :- कबीर जी बुधवार में कहते हैं कि मानव जन्म पाना अत्यंत दुर्लभ है यह शरीर सदैव बार-बार नहीं मिलता जो कल एक बार मेरे से नीचे गिर जाता है वह सुना डाली से नहीं लग सकता किसी प्रकार मानव शरीर छूट जाने के पश्चात दोबारा मनुष्य जन्म आसानी से नहीं मिलता इसके पश्चात पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता
यदि आप कबीर दास (Kabir Ke Dohe In Hindi PDF ) के दोहे डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं
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सारांश :-
आज इस लेख में कबीर दास जी द्वारा रचित (Kabir Ke Dohe In Hindi PDF) प्रसिद्ध दोनों की पीडीएफ दी गई है जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं और इसमें भी पढ़ सकते हैं
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Kabir Ke Dohe In Hindi PDF से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न :- FAQs
कबीर दास के 10 दोहे हिंदी में?
तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
कबीर दास के 200 दोहे?
जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय |
मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय |
कबीर दास के दोहे pdf?
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान
कबीर दास जी के मशहूर दोहे?
कबीर दास के लोकप्रिय दोहे :
.सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।
.सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।
.ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।
.औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।